यज्ञ संबंधी शंका समाधान यज्ञ और पशु वध
प्रश्न - क्या यज्ञ जो में पशु बलि की प्रथा वैदिक है ?
उत्तर- कुछ लोग मंत्रों में पशु बलि की बात स्वीकार करते हैं। वह कहते हैं कि यह जो मैं पशु बलि से मनोकामना ओं की सिद्धि तथा यजमान व बली दिए जाने वाले पशु को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है।
वास्तव में यह उन लोगों का भ्रम पूर्ण विचार है ,यज्ञ का लक्ष्य तो चेतन्य ,अचेतन्य सभी को निरोग बनाना सभी को पुष्टि प्रदान करना तथा विश्व का कल्याण करना है।
यज्ञ में प्रयुक्त सारे मंत्र प्राणी और अप्राणी जगत के कल्याण के अर्थ के द्योतक होते हैं ।हिंसामय यज्ञों से सारा वायुमंडल दूषित बनेगा, रक्त ,मांस ,चर्बी के जलने से भयंकर दुर्गंधि सर्वत्र फैलेगी, अनेक प्राणियों की हत्या होगी।
अतः हिंसामय यज्ञ पैशाचिक घृणित कर्म है ना कि वैदिक धर्म के अनुसार जगत कल्याण के साधन है देखिए वेदों में आए हुए वाक्य-
अविमा हिंसी:। 'गां मां हिंसी।
(यजुर्वेद अध्याय १३ मंत्र ४३)
यजमानस्य पशून् पाहि:।
(यजुर्वेद अध्याय ९ मंत्र १)
'एक शफं मां हिंसी:'।
(यजुर्वेद अध्याय १३ मंत्र ४८)
'मां हिंसी: पुरुषं जगत्।'
(यजुर्वेद अध्याय १३ मंत्र ३)
'अभयं न: पशुभ्य:'
(यजुर्वेद अध्याय ३६ मंत्र २३)
'पशूॅंस्त्रायेथाम्'।
(यजुर्वेद अध्याय ६ मंत्र ११)
'द्वि पादव चतुष्पात्पाहि'।
(यजुर्वेद अध्याय १४ मंत्र ८)
आदि मिलते हैं जिनका अर्थ है कि बकरी, गाय, एक खुर वाले जानवर, पुरुष व किसी भी प्राणी की हिंसा न करो। यजमान के पशुओं की रक्षा करो ।हमारे पशुओं को अभय हो ,सभी जन मिलकर पशुओं की रक्षा करें।दो पैर वाले मनुष्यों, पक्षियों तथा चार पैर वाले पशुओं की रक्षा करो इत्यादि।
इस प्रकार वेदों में पशु ,पक्षी, मानव तथा सभी जगत के प्राणियों की हिंसा का निषेध तथा उनकी रक्षा करने का स्पष्ट आदेश है तब यज्ञों में उनकी हिंसा स्वत: ही वेद के विरुद्ध सिद्ध हो जाती है।
वेद में यज्ञ के लिए *'अध्वर'* शब्द का प्रचुर स्थानों पर प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ अ+अध्वर अर्थात हिंसा से सर्वथा रहित होते हैं। यज्ञ वैदिक दृष्टि में पूर्णतया हिंसा से मुक्त होता है।