स्वामी स्वतंत्रानंद सरस्वती
जन्म एवं जन्म स्थान:-
लुधियाना जिला में राष्ट्र को अनेक विभूतियां दी हैं। स्वाधीनता संग्राम के यशस्वी सेनापति लाला लाजपत राय, शास्त्रार्थ समर के विजय योद्धा,आर्य गौरव स्वामी श्रद्धानंद जी, आर्य गौरव स्वामी दर्शनानंद जी,स्वाधीनता सेनानी साहित्यकार स्वामी सत्य देव जी परिव्राजक इसी जिले की देन है।पंडित सत्यव्रत जी सिद्धांत अलंकार पूर्व कुलपति गुरुकुल कांगड़ी भी इसी जिले के ही देन है। महर्षि दयानंद 1876 ईस्वी में पंजाब आए। उनके आगमन से वीरभूमि के निवासियों में चेतना संचार हुआ।इस नवजागरण की बेला में लुधियाना जिले के ही मोहित गांव के सरदार भगवान सिंह के घर में पौष मास विक्रमी संवत 1934 की पूर्णिमा को बालक केहर सिंह का जन्म हुआ। माता-पिता ने आपका नाम केहर सिंह रखा। केहर का अर्थ है सिंह तो केहर सिंह का अर्थ है सिंहों का सिंह । केहर सिंह ने अपने नाम को सार्थक करके दिखाया। यथा नाम तथा गुण की उक्ति आप पर पूर्णरूपेण चरितार्थ होती है।
पूर्वज:-
स्वामी स्वतंत्रानंद जी के पूर्वज हल्दीघाटी राजस्थान से आकर यहां मोही ग्राम में बसे थे।स्वामी जी के रगो में राजस्थान के सुर वीरों के बलिदान यों का उष्ण रक्त वह रहा था। सरदार भगवान जी की पत्नी की मृत्यु के बाद केहर सिंह जी का पालन उनके ननिहाल कस्बा लताला में हुआ।
आर्य समाज की छाप:-
केहर सिंह जी लताला के उदासी साधुओं के डेरे में पंडित विशन दास जी से वैद्यक पढ़ते थे। पंडित विशन दास जी संस्कृतज्ञ एवं सुयोग्य चिकित्सक थे । पंडित जी वैदिक धर्मी विचारों के थे । उनके प्रभाव में आकर केहर सिंह पर भी आर्य समाज की छाप पड़ी।
गृह त्याग और ब्रह्मचर्य व्रत:-
स्वर्गीय भगवान सिंह जी की इच्छा थी कि केहर सिंह सेना में जनरल कर्नल बने, परंतु उन्होंने वैभवशाली परिवार को त्याग कर सन्यासी बनाना उचित समझा। ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करते हुए उन्होंने धर्म शास्त्रों का अध्ययन, अध्यापन संस्कृत का अभ्यास व उपदेश देते हुए कई वर्षों तक कौपिनधारी रहे ।
सन्यास और विदेश यात्राएं :-
आर्य समाज के नेताओं और विद्वानों में स्वामी जी ने सर्वप्रथम सन्यास दीक्षा ली। इनको संन्यास की दीक्षा फिरोजपुर जिले के परबरनड़ नामक ग्राम में श्री स्वामी पूर्णानंद जी ने विक्रमी संवत 1957 में दी। स्वामी पूर्णानंद जी ने आपको प्राण पूरी नाम दिया। सन्यास ले कर आप 3 से 4 वर्ष के लिए दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में बिना किसी सभा संस्था की आर्थिक सहायता के धर्म प्रचार करते रहे। स्वदेश आगमन पर पंडित विशन दास जी की आज्ञा से आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में जुट गए । योगाभ्यास, स्वाध्याय, राष्ट्रभाषा प्रचार, ग्राम सुधार, ब्रम्हचर्य व्यायाम आदि के लिए पहले रामा मंडी फिर लुधियाना को केंद्र बनाया। 1914 ईस्वी में मॉरीशस में वेद प्रचार के लिए गए। वहां धर्मोपदेश करते हुए वहां के लोगों को संगठन सूत्र में बांधा। भारतीयों की रक्षा करते हुए राष्ट्रभाषा का प्रचार किया। मॉरीशस के लोगों का नैतिक उत्थान और चरित्र निर्माण किया।
स्वतंत्रता संग्राम:-
1916 ईस्वी में स्वदेश वापसी पर आर्य समाज के कार्य के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। मार्शल ला (1919 ईस्वी )के दिनों मैं मदन मोहन मालवीय जी की प्रेरणा से कांग्रेस को सहयोग दिया । 1920 ईस्वी में बर्मा गए।मंडले की ईदगाह से 25000 के जन समूह में स्वामी श्रद्धानंद जी के साथ स्वराज्य का प्रचार किया। अंग्रेज सरकार को आप कांटे की तरह चुगने लगे।1930 ईस्वी में लाहौर में कांग्रेस की सभा से भाषण देने के कारण आपको काल कोठरी में बंद कर दिया गया था ।
दयानंद मठ दीनानगर की स्थापना :-
1938 ईस्वी में स्वामी स्वतंत्रानंद जी द्वारा बिना नगर में दयानंद मठ की स्थापना की गई । इसे पहले मानव केंद्र बनाया गया। धर्म प्रचार संस्कृत प्रचार का यह केंद्र बन गया। सहस्र रोगी प्रत्येक मास यहां औषधालय से चिकित्सा करवाते हैं। कई क्रांतिकारी देशभक्त भूमिगत होने पर इसी आश्रम में शरण लेते हैं।महात्मा गांधी जी ने स्वामी स्वतंत्रानंद सु शिष्य यति को विशेष रुप से दयानंद मठ से ही सत्याग्रह करने की आज्ञा दी। उस समय स्वामी जी के उत्तराधिकारी स्वामी सर्वानंद जी महाराज मठ के अध्यक्ष थे।
स्वराज्य आंदोलन :-
आपने मालेरकोटला , लोहारू वह निजाम हैदराबाद के विरुद्ध सफल मोर्चे लगाकर लोगों के अधिकारों की रक्षा की। महात्मा गांधी जी भी आपकी कार्यक्षमता से प्रभावित हुए। आपके सफल व कुशल नेतृत्व से आर्य समाज की विजय हुई। स्वराज्य आंदोलनों की गति तीव्र हुई। आर्य समाज के प्रचार के लिए आप पूर्वी अफ्रीका और मॉरीशस गए। आपने वहां पर रह रहे भारतीयों की सांस्कृतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक अवस्था का अध्ययन करके भारतीयों की रक्षा के लिए बड़ा काम किया । अस्पृश्यता निवारण और दलितोद्धार के लिए अनेक कार्य किए। आप कई भाषाओं के विद्वान, लेखक, वक्ता इतिहास के मर्मज्ञ विद्वान थे ।आप आगे समाज के सर्वोच्च संगठन सार्वजनिक आर्य प्रतिनिधि सभा देहली के कार्यकर्ता प्रधान रहे ।
निर्वाण :-
भीमकाय स्वामी स्वतंत्रानंद जी इतिहास में वर्णित हनुमान, भीष्म, दयानंद के समान ब्रह्मचारी यों की कड़ी में से एक थे। 3 अप्रैल 1955 ईस्वी को मुंबई में आपको निर्वाण की प्राप्ति हुई।
*स्वामी स्वतंत्रानंद जी के जीवन पर आधारित यह छोटा सा लेख है, आशा करते हैं आप सभी इस लेख से आनंद प्राप्त करेंगे एवं लाभान्वित होंगे ।
धन्यवाद!
#शास्त्री किशोर चंद्र किसान#
Very good!!!
जवाब देंहटाएंVery good!!!
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