चारो वेद के मन्त्रों को स्मरण में रखने, संरक्षित करने तथा वेदमन्त्रों के पदों में मिलावट अथवा अशुद्धि न हो इसलिए
हमारे ऋषि मुनियो ने ११ तरह के पाठ करने की विधि बनाई ।
इनके पहले तीन पाठ को प्रकृति पाठ व अन्य आठ को विकृति पाठ कहते हैं।
*प्रकृति पाठ*
१) संहिता पाठ
इसमे वेद मन्त्रों के पद को अलग किये बिना ही पढ़ा जाता है ।
"अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् । होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥"
२) पदपाठ
इसमें पदों को अलग करके क्रम से उनको पढ़ा जाता है |
"अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । पु॒रःऽहि॑तम् । य॒ज्ञस्य॑ । दे॒वम् । ऋ॒त्विज॑म् । होता॑रम् । र॒त्न॒ऽधात॑मम् ॥"
३) क्रम पाठ
पदक्रम- १ २ | २ ३| ३ ४| ४ ५| ५ ६
क्रम पाठ करने के लिए पहले पदों को गिनकर, पहला पद दूसरे पद के साथ, दूसरा तीसरे पद के साथ, तीसरा चौथे पद के साथ इस तरह से पढ़ा जाता है |
जैसे
"अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ | ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् |पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ | य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम् | दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म् | ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम् | होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम् ||"
*विकृति पाठ*
४) जटा पाठ
पदक्रम - १ २| २ १| १ २|
२ ३| ३ २| २ ३|
३ ४| ४ ३| ३ ४|
४ ५| ५ ४| ४ ५|
५ ६| ६ ५| ५ ६|
६ ७| ७ ६| ६ ७|
"अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ | ई॒ळे॒ अ॒ग्निम् | अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ |
ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् | पु॒रःऽहि॑तम् ई॒ळे॒ | ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् |
पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ | य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम् | पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ |
य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम् | दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑ |य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम् |
दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म् | ऋ॒त्विज॑म् दे॒वम् | दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म् |
ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम् | होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म् | ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम् |
होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम् | र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम् | होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम् ||"
५) माला पाठ
जिस तरह पांच छह फूलों को लेकर माला गूथी जाती है ठीक उसी तरह इसमे क्रम बनता है
पदक्रम- १ २ ६ ५|
२ ३ ५ ४|
३ ४ ४ ३|
४ ५ ३ २|
५ ६ २ १|
"अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम् |
ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म् |
पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम् | ...... इसी विधि से .... |
६) शिखापाठ
पदक्रम- १ २| २ १ | १ २ ३|
२ ३| ३ २ | २ ३ ४|
३ ४| ४ ३ | ३ ४ ५|
४ ५| ५ ४ | ४ ५ ६|
७) ध्वज पाठ
यह क्रम पाठ की तरह ही होता है।
पदक्रम- १ २ २ ३ ३ ४
३ ४ २ ३ १ २|
४ ५ ५ ६ ६ ७
६ ७ ५ ६ ४ ५|
८) दण्डपाठ
पदक्रम- १ २| २ १| १ २| २ ३ | ३ २ १||
२ ३| ३ २| २ ३| ३ ४ | ४ ३ २||
इसी विधि से
९) रथ पाठ
पदक्रम- १ २ ४ ५|
१ २ ५ ४|
१ २ २ ३|
४ ५ ५ ४|
३ ४ ६ ७|
३ ४ ७ ६|
३ ४ ४ ५| इत्यादि
१०) घनपाठ
पदक्रम- १ २| २ १| १ २ ३| ३ २ १|
१ २ ३| २ ३| ३ २| २ ३ ४| ४ ३ २|
२ ३ ४| ३ ४| ४ ३| ३ ४ ५| ५ ४ ३| इत्यादि
११) लेखापाठ
पदक्रम- १ २ २ १ १ २| २ ३ ४ ४ ५ २ २ ३ ३ ४ इत्यादि |
इस तरह से ११ प्रकार के पाठ हैं, जिनका गुरुकुल में ब्रह्मचारी पाठ करते हैं | इससे वेद मन्त्र सुनने मे कर्णप्रिय लगते हैं । और विद्यार्थी मन्त्रों को याद भी कर लेते हैं ।
जब विदेशी आक्रांताओ ने भारत के गुरुकुल नष्ट करने प्रारम्भ कर दिये तो दक्षिण के ब्राह्मणों ने बहुत कष्ट सहकर वेदों के पाठ को आजतक सुरक्षित रखा । इसलिए वेदों में आजतक मिलावट नहीं हो पाया । यद्यपि अन्य सभी ग्रन्थों में मिलावट है ।