*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
*🔥यथे॒मां वाचं॑ कल्या॒णीमा॒वदा॑नि॒ जने॑भ्यः। ब्र॒ह्म॒रा॒ज॒न्या᳖भ्या शूद्राय॒ चार्या॑य च॒ स्वाय॒ चार॑णाय च।*
*यजुर्वेद २६\२*
हे मनुष्यों! जिस प्रकार मैं इस कल्याण करने वाली वेदवाणी को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अपने स्त्री, सेवक मित्र, शत्रु सब के लिए कहता हूं, उसी प्रकार तुम भी इसका सब मनुष्यों को उपदेश दिया करो
आज हिन्दू धर्म के ध्वजावाहक ये कहते मिल जाएंगे कि हिन्दू धर्म बहुत उदार है। किंतु यदि कायदे से देखा जाय तो हिन्दू धर्म मे उदारता सिर्फ दूसरे धर्म के प्रति ही है किन्तु इस हिन्दू धर्म मे आपस मे कोई उदारता नही। यदि ये उदार होता तो आज जाति के नाम पर ऊंच नीच एवं छुआछूत की भावना ही न होती। जिसके दुष्परिणाम स्वरूप लाखों हिन्दुओ ने दूसरे धर्मों को स्वीकार किया। यहां छुआछूत से मेरा तातपर्य है समाज मे निम्न ओर छोटी -उपेक्षित जातियों से नफरत ओर घृणापूर्ण व्यवहार। यहां तक कि उनको छूने को भी पाप समझना। इस प्रकार के व्यवहार और कार्य हमारे देश मे सदियों से होते चले जा रहे हैं।
इस तरह की भावना मानवता और ईश्वर के प्रति घोर अपराध और बहुत बड़ा कलंक है। छुआछूत को दूर करने के लिए सबसे पहले महर्षि दयानंद ने प्रयास किया था। उन्होंने अछूतों को गले लगा कर ऊंच-नीच जैसी रूढ़िवादिता पर सटीक प्रहार किया। नारी उत्थान, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा, छुआछूत जैसी कुरीतियों के विरूद्ध शंखनाद करके उन्होंने भारतीय जनमानस को जगाया था।
हमारे देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद अस्पृश्य जाति की समस्या पर प्रतिबंध लगाया गया।हमारे देश के भारतीय संविधान में सभी लोगो को एक समान न्याय और अधिकार दिया गया।
सरकारों द्वारा इसके विरुद्ध कानून बनाये जाने के बाद भी छुआछूत की वर्तमान स्थिति संतोषजनक नही है। आज सनातन धर्म तो कहीं दिखाई ही नही पड़ता। ये तो बुराइयों, कुरीतियो से ग्रसित हिन्दू धर्म है जिसमे धर्म के नाम पर गलत बातों का कोई सुधार स्वीकार नही!
सिर्फ कानून बनाने से काम नही चलने वाला जब लोगो में जमीनी स्तर पर एकात्मता की भावना और सामाजिक समानता दिखाई देगी तभी हमारे देश का विकास हो सकता है।
महर्षि दयानंद भारत को वेदों में देखते थे इसलिए वह लोगों को वेदों के अध्ययन-मनन की ओर लौटने की प्रेरणा भी देते थे। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 'यथेमां वाचं कल्याणीम्' इस मन्त्र से शूद्राधिकार सिद्ध किया है। वेद ईश्वरीय ग्रन्थ है। इसमे कहीं भी आपसी भेदभाव का जिक्र तक नही है। अतः सब के समान ही शूद्र भी वेद पढ़ सकता है।
उन्होंने वेदों के जरिए ही लोगों को बताया कि छुआछूत की भावना या व्यवहार एक गंभीर अपराध है जो समाज को दीमक की तरह खा जाएगा।
यदि हमे वास्तव में एक होना है तो आइए हम लौटें जाति पंथ, ऊंच नीच की भावना से दूर वेद की ओर।
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