स्वामी स्वतंत्रानंद सरस्वती जी

 🚩 लौह-पुरुष आर्य सन्यासी ... स्वामी स्वतंत्रानन्द जी ( 1877- 1955)जन्म नाम-केहरसिंह, स्थान - गांव मोही, ज़ि, लुधियाना - पिता सरदार भगवान सिंह, जाट सिख। स्कूली शिक्षा - जालन्धर।🚩


 🚩बचपन में शादी, पत्नी का देहांत। अध्यात्मिक वेदान्त ग्रन्थों में रुचि। संस्कृत का अभ्यास, वैराग्य में लग्न, उदासीन सम्प्रदाय के प. विशन दास से सम्पर्क के कारण आर्य विचारों के अध्ययन और सत्संग से आगे बढ़ते हुए हैं साधु प्राण पुरी नाम धारण किया। भिक्षा पात्र बाल्टी रखने के कारण बाल्टी वाले साधु भी कहाये। 


🚩उन की स्वतंत्र प्रकृति के कारण वह कालांतर में स्वामी स्वतंत्रानन्द जी प्रसिद्ध हुए।


🚩1901 ई  में कलकत्ता बंदरगाह से समद्री जहाज़ में सवार होकर मलाया, सिंगापुर, फिलीपींस, इंडोनेशिया की यात्रा की। 1904 ई में स्वदेश लौटे , 1906 ई में वह प्रयाग में कुंभ मेले में पहुंचे। फिर दिल्ली, पंजाब, मध्य भारत, गुजरात, राजस्थान में धर्म प्रचार किया। लुधियाना में "वेद प्रचारिणी सभा" के माध्यम से काम किया। 


🚩 1910ई में प्रकाश (बाद का नाम प्रताप) दैनिक के सम्पादक आर्य पत्रकार महाशय कृष्ण के सुझाव पर लाहौर पहुंचे। 


🚩 मारीशस में बड़ी संख्या में बसे भारतीय मूल के हिन्दू समाज में आर्य समाज का प्रचार कार्य शुरू हो गया था। पहले चिरंजीव भारद्वाज गये। उन की वापसी पर 1914 ई में स्वामी स्वतंत्रानन्द जी मारीशस गये। 1920 ई से आप ने बर्मा (म्यांमार) में एक वर्ष प्रचार किया। 1921 ई में आप पूर्वी अफ्रीका में प्रचार के लिए गये। प्रवासी भारतीयों  ने अपने अपनाये इन देशों में आर्य समाजें स्थापित कर ली थीं।


 🚩 भारत वापसी पर लाहौर में आपने '"दयानन्द उपदेशक विद्यालय " का आचार्य पद सम्भाला। 1938ई तक अपनी देख रेख में उन्होंने उच्च कोटि के व्याख्याता उपदेशक और शास्त्रार्थौ तैयार किये। 


🚩दक्षिण भारत में स्थित हैदराबाद रियासत का निज़ाम बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा का धार्मिक उत्पीडन करता था। उस ने 1938ई में आर्य समाज के प्रचार प्रसार पर पाबंदी लगा दी। इस दमनकारी कृत्य का विरोध करने के लिए आर्य समाज ने सत्याग्रह शुरू कर दिया। स्वामी जी को सर्व अधिकार सम्पन्न सेनापति के तौर पर शोलापुर में स्थापित सत्याग्रह संचालन शिविर का मुखिया बनाया गया। हज़ारों सत्याग्रही यहां से जत्थे बना कर हैदराबाद रियासत में गये और गिरफ्तार हो कर जेल गये। 50 के लगभग निज़ाम की जेलों में हुए दुर्व्यवहार से शहीद हो गए। अन्त में निज़ाम की हार हुई। 

🚩 लोहारु वर्तमान हरियाणा स्थित एक मुसलमान रियासत थी। वहां के नवाब ने आर्य समाज के प्रचार को बाधित किया तो आर्य समाज ने लोहा लिया। स्वामी जी ने अपने शरीर पर कुल्हाड़ी के वार सहे। हार  नवाब की हुई 


🚩 भारत के स्वतंत्रता-संग्राम में भी उन की भूमिका सक्रिय थी। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेज सरकार ने आप को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। सेनाओं के बीच विद्रोह फैलाने का आरोप लगाया गया। शारीरिक यातनाएं दी गईं। देश स्वतंत्र होने के बाद आर्य समाज ने उन्हें गो - रक्षा आंदोलन चलाने का भार दिया गया। 

🚩बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वामी स्वतंत्रानन्द जी ने वेदादि शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने बहुत से आर्य वीरों की जीवनियां रचीं। सिख मत का भी उन्होंने गहरा अध्ययन किया था। उन्होंने "आर्य समाज और सिख गुरु", "सिख और गौ" आदि पुस्तके लिखी। 


🚩3 अप्रैल 1955 को बंबई नगर में उन की जीवन लीला समाप्त होगयी। 

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