हो देव दयानंद देख लिया तेरे कारण,
जन-जन को हम सबको मिला है यह नव जीवन,
तुझे है सो सो बंधन, करे तेरा अभिनंदन ............
ओ देव दयानंद.....
हुआ अज्ञानता का दूर अंधेरा।
घर घर ज्ञान के दीप जले तेरे कारण।
जन जन को.....
झाड़ झंखाड तूने जड़ से उखाड़
बगिया में नए-नए फूल खिले तेरे कारण।
जन जन को......
फटे हुए थे यहां दिलों के दामन
प्यार की सुई से सब है सिले तेरे कारण।
जन जन को.....
भाई से भाई बिछड़ चुके थे
सदियों बाद फिर आन मिले तेरे कारण।
जन जन को....
गैर की धमकियों से दबने वाले
खत्म हुए हैं सब सिलसिले तेरे कारण।
जन जन को.....
हम एक भूख से ही उठ जाते थे पथिक तूफान से भी अब ना हिले तेरे कारण। जन-जन को.......