ऋषि ने जलाई है जो दिव्य ज्योति जहां में सदा यूं ही जलती रहेगी..
तर्ज - यह माना मेरी जां मुहब्बत सज़ा है।
ऋषि ने जलाई है जो दिव्य ज्योति
जहां में सदा यों ही जलती रहेगी ।
हज़ारों व लाखों को रस्ता मिलेगा
करोड़ों के जीवन बदलती रहेगी ।
ऋषि ने जलाई....
अविद्या, अभाव और अन्याय जड़ से,
हिलाने, जलाने, मिटाने की खातिर ।
दयानन्द के जां निसारों की टोली,
कफन बांध सर पे निकलती रहेगी।
ऋषि ने जलाई ......
जिधर से भी गुज़रेगी जिस वक्त लेकर,
यह हाथों में पाखण्ड, खण्डनी पताका ।
धर्म देश जाति के सब दुश्मनों को,
यह पैरों के नीचे मसलती रहेगी ।
ऋषि ने जलाई है जो दिव्य ज्योति....
पहाड़ों से भिड़ना तूफानों से लड़ना,
जनम से ही हम को सिखाया ऋषि ने ।
सदा मुश्किलों से, निडर जूझने की,
तमन्ना दिलों में मचलती रहेगी ।
ऋषि ने जलाई है जो दिव्य ज्योति....
सुनो कान धर कर ऐ दुनियां के लोगो,
"पथिक" आज से इन दीवानों की मस्ती ।
सदाचार का भाल ऊंचा करेगी,
दुराचार का सर कुचलती रहेगी।
ऋषि ने जलाई है ......