वैदिक धर्म का परिचय



 वैदिक धर्म से आशय उस धर्म से है जो वैदिक काल (अनुमानतः 1500 ईसापूर्व से 500 ईसापूर्व) में भारत के भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग (पंजाब तथा गंगा के मैदान का पश्चिमी भाग) के निवासियों का प्रमुख धर्म था। वैदिक काल के ग्रन्थों में वैदिक धर्म की मुख्य बातें समाहित हैं। वैदिक धर्म के कुछ अनुष्ठान तो वर्तमान समय में भी प्रचलन में हैं।[1] यद्यपि वर्तमान समय का हिन्दू धर्म वैदिक धर्म से बहुत सीमा तक भिन्न है, किन्तु वैदिक धर्म से ही हिन्दू धर्म को स्वरूप मिला।

वैदिक धर्म का विकास प्रारंभिक वैदिक काल (1500- 1100 ईसा पूर्व) के दौरान हुआ था, लेकिन इसकी जड़ें सिन्ट्हस्ता संस्कृति (2200-1800 ईसा पूर्व) और उसके बाद के मध्य एशियाई ऐंड्रोनोवो संस्कृति (20000-9000 ईसा पूर्व) और संभवतः सिंधु घाटी की सभ्यता (2600- 1900 ईसा पूर्व) में भी हैं। [2] यह मध्य एशियाई भारतवर्ष संस्कृति का एक सम्मिश्रण था, जो खुद "पुराने मध्य एशियाई और नए भारत-यूरोपीय तत्वों का एक समन्वित मिश्रण" था, जिसने "विशिष्ट धार्मिक मान्यताओं" से उधार लिया था। बैक्ट्रिया-मैरेजा संस्कृति; और सिंधु घाटी के हड़प्पा संस्कृति के अवशेष।


वैदिक काल के दौरान (11000-5000 ईसा पूर्व) आश्रमो गुरूकुलो से धर्म विकसित हुआ, जो कुरु-पांडव क्षेत्र की विचारधारा के रूप में विकसित हुआ, जो कुरु-पांडव युग के बाद एक व्यापक क्षेत्र में विस्तारित हुआ।


आधुनिक आर्य समाज इसी धार्मिक व्यवस्था पर आधारित हैं। वैदिक संस्कृत में लिखे चार वेद इसकी धार्मिक किताबें हैं। वेदिक मान्यता के अनुसार ऋग्वेद और अन्य वेदों के मन्त्र परमेश्वर अथवा परमात्मा द्वारा ऋषियों को प्रकट किये गए थे। इसलिए वेदों को 'श्रुति' यानि, 'जो सुना गया है' कहा जाता है, जबकि श्रुति ग्रन्थौ के अनुशरण कर वेदज्ञ द्वारा रचा गया वेदांगादि सूत्र ग्रन्थ स्मृति कहलाता है। जिसके नीव पर वैदिक सनातन धर्म और वैदिक आर्यसमाजी आदि सभी का व्यवहार का आधार रहा है। कहा जाता है। वेदों को 'अपौरुषय' यानि 'जीवपुरुषकृत नहीं' भी कहा जाता है, जिसका तात्पर्य है कि उनकी कृति दिव्य है, अतः श्रुति मानवसम्बद्ध दोष मुक्त है। "प्राचीन वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म" का सारा धार्मिक व्यवहार विभिन वेद शाखा सम्बद्ध कल्पसूत्र, श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र आदि ग्रन्थों के आधार में चलता है। इसके अलावा अर्वाचीन वैदिक केवल वेदों के संहिताखण्ड को ही वेद स्वीकारते है।

                     लेखक :  अभिषेक आर्य 

                                दयानंद मठ दीनानगर 

                                  गुरदासपुर ....

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