हितेश ठाकुर
शहीद भगत सिंह।
शहीद भगत सिंह बलिदान, तप, देशभक्ति, साहसी विचार और सद्गुणों वाले भारत माता के ऐसे महान सपूत हैं जिनका नाम सुनते ही हर देशभक्त भारतीय का लिए सीना गर्व से फूल जाता है और सर श्रद्धा से झुक जाता है। आंखों के सामने एक खूबसूरत, लम्बा, अंग्रेजी हैट पहने जवान चेहरा उभर आता है और कानों में राम प्रसाद बिस्मिल के स्वर 'मेरा रंग दे बसंती चोला गूंजने लगते हैं। बहुत से लेखकों और फिल्मी जगत के लोगों ने भगत सिंह के जीवन को अपनी दृष्टि से देखा है और अन्य लोगों को दिखाने का प्रयास किया है। कई किताबों में भगत सिंह को कु साम्यवादी और मार्क्सवादी साबित करने का प्रयास किया गया है। हालांकि साम्यवादी कार्यालयों में भारत के किसी भी जननायक, राष्ट्रपुरुष या विचारक का चित्र कभी नहीं होते हैं सिर्फ कार्ल मार्क्स या लेनिन जैसे विदेशियों के चित्र। भारत को सभ्यता, संस्कृति, धर्म, भाषा, राष्ट्रपुरुष और विचारधारा मार्क्सवादियों को स परेशान करतो है। फिर भी कम्युनिस्ट कार्यालयों को थोड़ा भारतीय रूप देने के लिए एक षडयंत्र रचा गया और भगत सिंह को बसंती की बजाय लाल चोला
पहनाने का प्रयत्न किया गया। यह ठीक है कि शहीद भगत सिंह के दिल में हमेशा गरीबों, मजदूरों और किसानों के दुःख देखकर पीड़ा उभरती थी। वह हर पल गरीबों की आर्थिक स्वतंत्रता और सामन्तवाद के अन्त के लिए प्रयत्नशील रहते थे। परन्तु यह पीड़ा के मार्क्सवाद के अध्ययन या प्रभाव के कारण नहीं थी। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होनें अदालत में कहा था, मानवता से प्यार में हम सबसे आगे हैं। किसी व्यक्ति से हमारा द्वेष नहीं और हम मानवीय जीवन की पवित्रता, शब्दों की परिधि से परे मानते पूर ...............कसी भी कीमत पर बल का प्रयोग न करना, केवल और केवल कल्पना ही हो सकती है, जो नया आन्दोलन इस देश में जागा है और जिस नई सुबह की चेतावनी हमने दी है, इसकी प्रेरणा के आदर्श है गुरू गोबिन्द सिंह, शिवाजी, कमाल पाशा, रिजा खान, वाशिंग्टन, गैरीबाल्डी ........आदि
इस वक्तव्य से अनुमान लगाना कठिन नहीं हैं कि भगत सिंह को साहस, देश प्रेम और बलिदान की प्रेरणा दशम गुरू गोबिन्द सिंह जी और छत्रपति शिवाजी से उस मिली जिन्होंने अपना पूरा जीवन, राष्ट्र के अस्तित्व में विलीन कर दिया। अपने पिता सरदार किशन सिंह जी से भगत सिंह ने अन्तिम मुलाकात में कहा, "गर्मियां देश आ रही हैं, मैं खुद को काल कोठरी की आग में जलाने से तो मर जाना बेहतर समझता हूँ। मैं पुनः भारत में जन्म लूंगा और हो सकता है कि फिर एक बार अंग्रेजों से टक्कर लेनी पड़े, मेरा देश भारत अवश्य आज़ाद होगा।"
अपने छोटे भाई-बहनों से कहा, "हिम्मत न हारना, साथ ही मेरी मौत के बाद देश और जनता की सेवा से मुंह न मोड़ लेना। आवश्यकता पड़ने पर देश के लिए बलिदान हो जाने से पीछे न हटना।"अन्त में अपनी माँ को पास बुलाकार कहा, मेरी लाश लेने आप मत आना, कुलबीर को भेज देना, कहीं आप रो पड़ी, तो कहेंगे कि भगत सिंह की माँ रो रही थी।
इतना कहकर ठहाके मारकर हंस पड़े, मौत के एकदम पास होने पर भी भगत का सिंह का धैर्य और साहस असामान्य था। अपने परिवार के साथ अन्तिम विदाई के समय बोलते हुए भगत सिंह के शब्द राष्ट्रीय भावना को स्पष्ट करते हैं।
जीवन के आखिरी दिनों में उन्होंने जेल में 'गीता रहस्य' किताब मंगवाई और के पढ़ी। गीता का हिन्दी में अनुवाद करना, बार-बार वन्दे मातरम् का उद्घोष करना ना और हर समय मेरा रंग दे बसंती चोला गीत को गाना, इस तथ्य का परिचायक है कि भगत सिंह पूर्णतः भारत के बसंती रंग में रंगे हुए थे। बसंती चोला पहनने का र अर्थ क्या है? यह केवल एक लिबास की बात तो है नहीं। बसंती चोला पहनने का क अर्थ है अपने सारे अस्तित्व को भगवा कर लेना ! तप, तपस्या, त्याग और बलिदान ड़ा के रंग में रंग जाना, उस भगवा को अपना लेना जो भारत के शूरवीरों और ऋषि- मुनियों का प्रिय रंग रहा है, अर्थात् भारत की परम्पराओं, संस्कृति और राष्ट्रीयता में रा पूरी तरह विलीन हो जाना। इसलिए, इस निष्कर्ष पर छलांग लगाना कि भगत सिंह नते केवल रूसी विचारों से प्रभावित थे, सर्वथा गलत है और तथ्यों से परे है।
जिस वीरपुरूष के प्रेरणास्रोत गीता हाथ में लेकर फांसी के फन्दे को चूमने नई वाले रामप्रसाद बिस्मिल हों, जो हिन्दुत्व के पुरोधा वीर सावरकर की किताबें ह, पढ़ता रहा हो, जो पुनर्जन्म की बात कह फांसी पर चढ़ने वाले मदनलाल ढींगरा का बचपन से प्रशंसक रहा हो वह तन से ही नहीं मन से भी बसंती है, भगवा है। जिस हिन्दुस्थान सोशलिस्ट रिपब्लिकिन आर्मी के अन्तर्गत भगत सिंह कार्य करते थे, उसके मुखिया चन्द्रशेखर आज़ाद अन्यन्त धार्मिक वृति के थे। सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है....... जैसे गीत अक्सर गाने वाले भगत सिंह को यां देशभक्ति, राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति का ही प्रतीक माना जा सकता है।
(हितेश ठाकुर
(दयानंद मठ दीनानगर)
(जिला गुरदासपुर पंजाब)