आज का युग
लेखक - आचार्य हंसराज मिश्रा
आज का युग सही सलाह का नहीं है,वाक्-कौशल का हो चला है। यहाँ सत्य से नहीं, शब्दों से युद्ध होता है। कुछ लोग अपनी चालाक बुद्धि को “चिंतन” का नाम देते हैं — वे पहले समस्या गढ़ते हैं, फिर गंभीर मुद्रा में आपसे प्रश्न करते हैं — “समस्या नहीं, समाधान बताओ।”
पर वे किसी समाधान के इच्छुक नहीं होते; उन्हें तो बहस का कोलाहल चाहिए — ऊँची आवाज़ें, बौद्धिक मुद्रा, और कुछ चमकदार शब्द जिनसे लगे कि वे चिंतनशील हैं।
आज संवाद नहीं, प्रदर्शन प्रमुख हो गया है। लोग सुनते नहीं, बस सुनाने की प्रतीक्षा करते हैं। हर चर्चा युद्ध बन जाती है, हर असहमति विद्रोह समझी जाती है।
परिणामस्वरूप, क्रियाशील व्यक्ति निष्क्रिय होने लगता है — और निष्क्रिय लोग क्रियाशीलता रूपी ढोंग का प्रदर्शन करने लगते हैं।
जबकि इतिहास साक्षी है, बोली से नहीं, कार्य से समाज में परिवर्तन आया है।
अब समाज में कार्य करने वालों का नहीं, वाक्पटुता का वर्चस्व है।
माइक, माला, मंच और मीडिया — सब जगह केवल शब्दों का शोर है; सुनना कोई नहीं चाहता, सबको केवल सुनाना है।
जो व्यक्ति सही सलाह देता है, उसकी बात अनसुनी रह जाती है।
और जो बुद्धि, चतुरी और चाटुकारता का प्रदर्शन करता है, वाक्पटुता का जाल बुनता है — वही लोकप्रिय होता है।
उसके असत्य को भी समाज सत्य मान लेता है, क्योंकि चमकदार शब्दों की दुनिया में सत्य की चमक फीकी पड़ गई है।
इसीलिए जब कोई समस्या पर समाधान माँगे,
तो समाधान देने के भ्रम में मत पड़ो।
वो तुम्हें इस “समाधान” के नाटक में खींचने का प्रयास करेंगे।
जितना इस नाटक से दूर रहोगे, उतनी ही मानसिक शांति बनी रहेगी।
