क्या ईश्वर है ?


हां ईश्वर है ।
क्योंकि विचार करने योग्य है ,कि इंद्रियों और मन से गुणों का प्रत्यक्ष होता है गुणी का नहीं । जैसे चारों त्वचा आदि इंद्रियों से स्पष्ट रूप रस और गंध का जान होने से गुणी जो पृथ्वी उसका आत्म युक्त मन से प्रत्यक्ष किया जाता है । वैसा इस प्रत्यक्ष सृष्टि में रचना विशेष आदि जान आदि गुणों के प्रत्यक्ष होने से परमेश्वर का भी प्रत्यक्ष है ।
और जब आत्मा मन और मन इंद्रियों को किसी विषय में लगाता व चोरी आदि बुरी व परोपकार आदि अच्छी बातें की करने का जिस क्षण में आरंभ करता है , उस समय जीव की इच्छा ज्ञान आदि उसी इच्छित विषय पर झुक जाते हैं । उसी क्षण में आत्मा के भीतर से बुरे काम करने में भय ,शंका और लज्जा तथा अच्छे कामों के करने मे अभय  और आनंद उत्साह उठता  है। वह जीवात्मा की ओर से नहीं, किंतु परमात्मा की ओर से है ।

और जब जीवात्मा शुद्ध होकर परमात्मा का विचार करने में तत्पर रहता है ,उसी समय दोनों प्रत्यक्ष होते हैं । जब परमेश्वर का प्रत्यक्ष होता है  तो अनुपम आदि से परमेश्वर के जान होने में क्या संदेह है, क्योंकि कार्य को देख के कारण का अनुमान होता है ।

क्योंकि जगत का कोई भी पदार्थ हो उसका बनाने वाला कोई ना कोई अवश्य है, मकान कपड़ा पुस्तक आदि को भी बनाने वाला कोई ना कोई अवश्य है , यहां यह बात विचारणीय है, कि क्या जड़ पदार्थ स्वयं कोई क्रिया कर सकता है , कदापि नहीं कर सकता ।
 इन बातों से यह सिद्ध होता है, कि संसार के समस्त पदार्थ परतंत्र हैं , और प्रबंध के अधीन हैं , वे स्वतंत्र नहीं हैं ।
संसार का कोई भी जड़ पदार्थ आज तक स्वयं नहीं बना , बल्कि उसका बनाने वाला अन्य कोई ना कोई अवश्य है, अतः यह जगत भी स्वयं नहीं बना इसके रचयिता स्वयं परमात्मा है ।

कहते हैं कि, सूर्य , चंद्र,समुद्र , पर्वत, वायु, अग्नि, आदि को प्रकृति स्वयं बना लेती है, यदि ऐसा है तो वह जमीन बनाने के बाद क्यों रुक जाती है? आगे घड़ा, तश्तरी, आदि क्यों नहीं बना लेती?
 अतः संसार का बनाने वाला परमात्मा है ।
जिस प्रकार स्कूल का मास्टर बच्चों को शुरू में 1 लाइन लिखकर देता है, और फिर उसे देखकर बच्चा उसी प्रकार लिखता है, इसी तरह मनुष्य की सामर्थ्य जहां तक नहीं पहुंच सकती थी, वहां तक उस जानी परमात्मा ने इस सृष्टि को बनाया और उसके बाद फिर मनुष्य बनाता है ।

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