जो पक्षपात रहित सत्याचरण कहता है वह न्याय और जो पक्षपात से मिथ्या चरण करता है वह अन्याय कहलाता है। इस प्रकार अधर्म एवं अन्याय का परिभाषा करके सभी को सावधान करते हुए महर्षि लिखतेखते हैं।-ध्यान रखो कि सब अधर्मी और स्वार्थी लोगों की लीला ऐसी ही हुआ करती है कि अपने मतलब के लिए अनेक अन्याय रूप कर्म करके अन्य मनुष्यों को हर लेते हैं। अभाज्ञा है ऐसे मनुष्यों का की जिनकी आत्मा विद्या और अधर्म अंधकार मैं गिर के कदापि सुख को प्राप्त नहीं होते।
इस प्रकार विद्या और अधर्म अंधकार को दूर करके असत्य आदि व्यवहारों को छोड़कर अधर्मात्मा बन कर उत्तम व्यवहार की प्राप्ति के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती ने यह पुस्तक बनाई है। महा ऋषि जी लिखते हैं- यथायोग्य व्यवहार किए बिना किसी को सर्व सुख कैसे हो सकता है? क्या मनुष्य अच्छी शिक्षा के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष फलों को सिद्ध नहीं कर सकता और इसके बिना पशु के समान होकर दुखी नहीं रहता है? मनुष्य को दुष्ट आचरण तथा दुष्ट व्यवहार छुड़ाना महा ऋषि का प्रबल उद्देश्य प्रतीत होता है। उनकी मान्यता है कि दुष्ट व्यवहार से कभी सुख तथा उत्तम व्यवहार से दुखी नहीं हो सकता। लिखते हैं-जो मनुष्य विद्या कम भी जानता हो परंतु पूर्वोकत दुष्ट व्यवहारों को छोड़कर, धार्मिक होकर खाने-पीने बोलने, सोने, बैठने, लेने, देने आदि व्यवहार सत्या से युक्त करता हो वह कहीं कभी दुख को प्राप्त नहीं कर सकता और जो संपूर्ण विद्या पढ़कर पूर्वोकत उत्तम व्यवहारों को छोड़कर दुष्ट कर्मों को करता है वह कभी सुख को प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए सब मनुष्यों को उचित है कि आप अपने लड़के लड़की, इष्ट मित्र , अड़ोसी पड़ोसी आदि को विद्या और सुशिक्षा युक्त करके सर्वदा आनंद करते रहें।
महा ऋषि ने के रूप में मुख तथा दुष्ट राजा का दृष्टांत एवं सुनीति के रूप में उत्तम राजा का दृष्टांत देखकर लिखा है कि जिस देश प्राणियों का अभाग्य उदय होता है तब गर्भ गंद के सदृश स्वार्थी, अधर्मी प्रजा का नाश करने वाले राजा,धनाढ्य और खुशामदियों की सभा और उनके समान उपद्रवी राजविद्रोही प्रजा भी होती है और जब जिस देशसथ न्यू का सौभाग्य उदय होने वाला होता है सुनीति के समान धार्मिक विद्वान राजा, पुत्र बात प्रजा का पालन करने वाली राज सहित सभा और धार्मिक पुरुषार्थी पिता के समान राज प्रबंध हो प्रीति युक्त मंगलकारिणी प्रजा होती है। जहां अभाग्योदय वही विपरीत बुद्धि। मनुष्य परस्पर दोहादिसवरुप धर्म से विपरीत दुख के ही काम करते जाते हैं और जहां सौभाग्योदय वहां परस्पर उपकार प्रति, विद्या, सत्य, धर्म और उत्तम कार्य अधर्म से अलग होकर करते रहते हैं। वे सदा आनंद को प्राप्त करते हैं।
साहिल केसर