आर्य समाज का चौथा नियम है_
सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उदित रहना चाहिए।
वैसे तो सभी मतवाले इससे सहमत हैं। किंतु सत्य का ग्रहण पर सत्य त्याग और तभी हो सकता है। जब हमें शक्ति को पहचान ना आता हो। महर्षि दयानंद के शब्दों में_ सत्य क्या है और असत्य है ? इसकी अपेक्षा के पांच साधन है । जिसमें प्रथम_ ईश्वर, उसके गुण, कर्म, स्वभाव और वेद विद्या। दूसरा सृष्टि क्रम। तीसरा प्रत्यक्ष आदि 8 प्रमाण। चौथा आप्तों का अचार उपदेश ग्रंथ और सिद्धांत। पांचवा अपने आत्मा की साक्षी, अनुकूलता, पवित्रता और विज्ञान।
१. ईश्वर आदि परीक्षा करना उसको कहते हैं जो कि जो जो ईश्वर के न्याय आदि गुण पक्षपात रहित सृष्टि बनाने का कर्म और सत्य न्याय दयालु और उपकारिता आदि स्वभाव और वेद उपदेश से सत्य और धर्म ठहरे, वही सत्य और धर्म है और जो असत्य और अधर्म ठहरे, वही असत्य और अधर्म है।
२. सृष्टि क्रम उसको कहते हैं, जो सृष्टि के गुण कर्म और स्वभाव से विरुद्ध अर्थात प्रकृति के नियम के विपरीत हो वह अमित या और जो अनुकूल हो वह सत्य कह आता है। ऐसे कोई कहे बिना मां बाप के लड़का काम से देखना आंख से बोलना अभी बातें सृष्टि क्रम के विरुद्ध होने से मिथ्या है। किसी प्रकार महाभारत में भी कुंती का अपने पुत्र कर्ण को सूर्य से उत्पन्न कराना भी सृष्टि कर्म के विरुद्ध है। अंत: यह भी मिथ्या है। ईसा मसीह के बारे में भी प्रसिद्धि है कि वह बिना बाप के कुमारी मरियम नामक एक कन्या से पैदा हुआ था। ऐसा होना सर्वथा संभव है, अतः यह मिथ्या है। इसी प्रकार चित्रों में गणेश जी का सिर हाथी का बनाया जाता है हनुमान आदि के मुख्य बंदर का तथा उच्च संयुक्त बनाते हैं इसी प्रकार की सभी बातें सृष्टि क्रम के विरुद्ध होने से मिथ्या है।
३. प्रत्यक्ष आदि 8 प्रमाण के आधार पर जो ठीक ठहरे वह सत्य कथा जो जो विरुद्ध ठहरे वह मिथ्या समझना चाहिए प्रत्यक्ष आदि 8 प्रमाण कार हैं-
क. प्रत्यक्ष-कान नाक आंख इंद्रियों का पदार्थ से संबंध होने पर जो ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष है।
ख_ अनुमान: यह प्रत्यक्ष के आधार पर ही होता है। पहले देखी वस्तुओं में कार्य के आधार पर कारण का तथा कारण के आधार पर कार्य का ज्ञान होना अनुमान कहलाता है। यथा_ आकाश में बादल कारण देखकर वर्षा कार्य का अनुमान करना तथा नदी का गंदला पानी एवं बाढ़ कार्य देखकर भी वर्षा का अनुमान करना ।
ग _ उपमान : वनों में मनुष्य की आकृति वाले किसी प्राणी को देखकर समझना कि यह वनमानुष है ।
घ _ शब्द: सत्योदेषटा ऋषि मुनि का उपदेश तथा वेद ।
ङ . ऐतिह्य: भूतकाल के पुरुषों की चेष्टा , सृष्टि आदि पदार्थों की कथा ।
च. अर्थापति: एक बात को सुनकर प्रसगं से दूसरी बात जान लेना, जैसे किसी ने कहा कि मोहन दिन में खाना ना खाने पर भी हष्ट पुष्ट है । जिस से ज्ञात हुआ कि वह रात्रि में खाना खाता होगा ।
छ_ संभव: कारण से कार्य होना आदि ।
ज. अभाव: कहीं पर किसी पदार्थ की अनुपस्थिति देखकर उसके अभाव का निश्चय करना ।
इस प्रकार इन 8 प्रमाणों के आधार पर भी सत्या सत्य जाना जाता है ।
४. आप्तों के अचार और सिद्धांत से परीक्षा करना उसको कहते हैं कि जो _ जो सत्यवादी , सत्य कारी, सत्य मानी पक्षपात रहित, सबके हितैषी विद्वान सबके मुख के लिए यतन करें, वेदधार्मिक लोग आप्त कहाते हैं । उनके उपदेश अचार ग्रंथ और सिद्धांत से जो युक्त हो वह सत्य और जो विपरीत हो वह मिथ्या है ।
५. आत्मा से परीक्षा उसको कहते हैं कि जो जो अपना आत्मा अपने लिए चाहे शो सबके लिए चहान और जो जो न चाहे उसे किसी के लिए न चाहना । जैसे आत्मा में वैसे मन में जैसे मन में वैसे क्रिया में होने को जानने की इच्छा, शुद्ध भाग और विद्या के नेत्र से देखकर सत्य और असत्य का निश्चय करना चाहिए ।
प्रस्तुतकर्ता-अजय सेन
शोभनम
जवाब देंहटाएं