किसी को मारने या सताने की इच्छा हिंसा कहलाती है और ऐसी इच्छा का ना होना अहिंसा कहलाती है। हिंसा हत्या को जन्म देती है। क्या करना पाप है। हिंसा के बिना हत्या नहीं हो सकती इसीलिए अहिंसा परम धर्म कहते हैं-अहिंसा परमो धर्म:।
महात्मा महात्मा गांधी व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अहिंसा और सत्य पर बड़ा बल देते थे। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम भी इन दो हथियारों से लड़ा। यदि सत्याग्रह से काम ना चली तो सहयोग करो। बुरे का साथ देना छोड़ दो । यदि फिर भी सफलता ना मिले तो अवज्ञा को, आग या ना मानो। जिसके साथ संघर्ष है , उनसे संघर्ष करो, किंतु किसी भी दशा में अहिंसा का साथ मत छोड़ो ।
अहिंसा के तीन रूप है जो उत्तरोत्तर श्रेष्ठ है। किसी को अपने शरीर से कष्ट पहुंचाने की इच्छा न करना शारीरिक अहिंसा है। वाणी से कष्ट पहुंचाने की इच्छा न करना वाचिक अहिंसा है और किसी का मन से भी बुरा न जाना मानसिक अहिंसा है। अतः हमें मनसा, वाचा, करमना तीनों ही रूपों में हिंसा करने से बचना चाहिए।
हमारा मन एक ऐसी चीज है, जिसके तार दूसरे लोगों के साथ, यहां तक कि पशु पक्षियों तक के मानों के तार के साथ जुड़ा रहता है। जब हम किसी के लिए बुरा सोचते हैं तो उनके मन भी हमारे लिए दुर्भाव पैदा होने लगता है। यदि हमारा मन किसी के लिए सद्भाव युक्त है तो उसके मन में हमारे प्रति किसी कारण, कोई द्वेष भाव भी हो तो वह अपने आप ही समाप्त हो जाता है और वह भी हमारे प्रति सद्भाव रखने लगता है। नफरत और प्यार में, घृणा और प्रेम में विधानसभा प्यार या प्रेम के ही होती है।वन में तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों के आश्रम में सिंह आदि पशु उसी प्रकार आचरण करते, जैसे हमारे घरों में पालतू पशु करते हैं।
जिस पर बैठकर स्वामी दयानंद ध्यान लगाते थे। आनंद स्वामी ने भी उस पर बैठकर ध्यान लगाया। ध्यान के पश्चात आंखें खोलने पर उन्हें एक विशाल शेर अपनी और आता दिखाई दिया। साधु तो अपनी कुटिया के अंदर बैठे थे। उन्होंने आवाज देकर कहा , "यह सिंह आ गया है।"वे बोले,"घबराने की आवश्यकता नहीं कोमा यह सिंह तुम्हें कुछ नहीं करेगा।"आनंद स्वामी आधी आंख से सिंह की ओर देखते रहे। वह उनके पास से निकल कर उस साधु के पास चला गया। साधु ने उसकी पीठ सहलाई, उसके पांव झुकाए, उसके सिर पर हाथ फेरे, उसे प्यार किया और बहुत शेर चला गया। इसी साधु ने बताया कि दयानंद भी इस प्रकार सिंहो से प्यार करते थे ।
वास्तव में यदि हमारे मन में दूसरों को सताने की भावना ना होकर प्यार की भावना हो तो दूसरे के ह्रदय में भी इस भावना का संचार होता है। अहिंसा को इसलिए परम धर्म कहा गया है। अहिंसा से सब बैर, भय और आशंका दूर हो जाता है।