आयुर्वेद शास्त्रों के महान ग्रंन्थ 'चरक'को लिखनेवाले महर्षि पुनर्वसु अपने अद्वितीय ग्रंन्थ को लिखने के पश्चात् एक जंगल में चले जा रहे थे । घने जंगल की पगडंडी पर आगे वे थे, पीछे उनका शिष्य अगिनवेश |
एका एक महर्षि पुनर्वसु खड़े हो गये | आगे की ओर देखा उन्होंने, चारों ओर देखा |एक लंबी सांस लेकर बोले- महानाश आने वाला है।
अग्निवेश ने पूछा- "कैसा महा नाश गुरुदेव?''
पुनर्वसु बोले- मैं देखता हूं कि जल बिगड़ रहां है ,सूर्य और चंद्र बिगड़ रही है , वायु, तारे, आकाश, सूर्य और चंद्र बिगड़ रहे हैं | अरे , अनाज अपनी शक्ति छोड़ देगा । औषधियां अपना प्रभाव छोड़ देगी। पृथ्वी पर टूटते हुए तारे गिरेंगे। विनाश करने वाली आंधियां चलेंगे। विनाशकारी भूकंप उठेंगे। बड़े-बड़े बम गिरेंगे। महा नाश का महा तांडव जाग उठेगा। मनुष्य बचेगा नहीं, बचेगा नहीं।
यह कथा चरक के विमान-स्थान के तीसरे अध्याय में आती है |इसमें लिखा है कि अग्निवेश ने जब यह भायानक भविष्यवाणी सुनी तो हाथ जोड़कर कहा -''गुरुदेव ! आप यह भयभीत करनेवाले भविष्य गाथा क्यों कर रहे हैं? सब रोग का सामना कर सकें,ऐसा ग्रंथ आपने लिख दिया । दुनिया के प्रत्येक रोग का इलाज लिख दिया। फिर भी यह विनाश आएगा तो क्यों?
महर्षि पुनर्वसु ने कहा इसलिए आएगा कि लोग धर्म को छोड़कर अधर्म की और चल पड़ेंगे - सत्य को छोड़कर असत्य की ओर। और धर्म में रुचि नहीं रहेगी।
अग्निवेश ने पूछा - धर्म और सत्य की और मनुष्य की रुचि ना रहने का क्या कारण होगा, गुरुदेव?
गुरु बोले- बुद्धि का बिगड़ जाना ही इस महा नाश का कारण होगा। जब बुद्धि बिगड़ जाती है, तब वह सत्य का मार्ग छोड़कर असत्य की ओर बढ़ती है, तब धर्म में रुचि नहीं रहती।
बुद्धि का बिगड़ जाना ही सब रोगों का कारण है, परंतु बुद्धि के बिगड़ जाने से केवल शारीरिक रोग पैदा नहीं होते, सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और आत्मिक सभी लोग पैदा होते हैं। इसी लिए कहते हैं कि जब नाश का समय निकट आता है, तब बुद्धि उल्टे मार्ग पर चलने लगती है। भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा है -
बुद्धिनाशात्प्रणष्यति ।
बुद्धि का नाश होने से महानाश जाग उठता है।