आर्य शब्द की व्युत्पति VS. हिन्दू शब्द की व्युत्पति

 *आर्य शब्द की व्युत्पति  VS. हिन्दू शब्द की व्युत्पति*


डॉ डी के गर्ग चेयरमैन ईशान शिक्षा संस्थान 


सहयोग - डॉ मुमुक्षु आर्य 


हिन्दू और आर्य शब्द दोनों मे क्या भेद है? 

क्या हम हिन्दू है? लेकिन प्राचीन ग्रंथो मे हिन्दू शब्द कहीं नहीं है, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथो मे आर्य शब्द का प्रयोग हुआ है. ये वामपंथियों ने झूठा प्रचार किया कि आर्य कोई अलग से जनजाति है और आर्य लोग बाहर से आए और आर्य संस्कृति का भ्रामक प्रचार किया गया. 

इस विषय मे खुले दिमाग से विचार करने और शास्त्रों का अध्ययन करने की जरूरत है. 


मैं पहले भी लिख चुका हूं कि जाति, वर्ण, लिंग,वर्ग, दलित, आर्य आदि सभी के अलग अलग अर्थ है इनमे मिलावट करना ठीक नहीं है. 

यहां केवल हिन्दू और आर्य शब्द की व्याख्या पर विचार करते हैं. 

1.आर्य का अर्थ क्या है? 

   आर्य शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है. मूलतः 

"ॠ गतौ" धातु से "आर्य"शब्द सिद्ध होता है। जिसका अर्थ है "गतिः प्रापणार्थे" अर्थात् गति-ज्ञान, गमन, प्राप्ति करने और प्राप्त कराने वाले को आर्य कहते हैं।  *प्रमाण*:-1. आर्य ईश्वरपुत्रः। (निरुक्त 6/26) अर्थात् आर्य ईश्वर के पुत्र का नाम है।


वेद मे ईश्वर कहता है कि- अहं भूमिमददामायार्य।

(ॠ. 4/26/2 ) अर्थात् मैं इस भूमि का राज्य आर्यो के लिये प्रदान करता हूँ।


भगवान ने आदेश दिया कि "सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ"

इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।

अपघ्रन्तो अराव्णः।। (ॠ.9/63/5) 

अर्थ--- हे परम ऐश्वर्य युक्त आत्मज्ञानी! तुम आत्मशक्ति का विकास करते हुये गतिशील, प्रमादरहित, होकर कृपणता, अदानशीलता, अनुदारता, ईर्ष्या आदि का विनाश करते हुये सारे संसार को आर्य बनाओ।

*प्रमाण - 2*

*प्राचीन कोष मे "आर्य" शब्द के अर्थ*:--

संस्कृत के शब्द कल्पद्रुम, वाचस्पत्य,बृहदभिधानादि कोषों मे आर्य शब्द के अर्थ निम्न पाये जाते है----

आर्यः:--पूज्यः, श्रेष्ठः, धार्मिकः, धर्मशीलः, मान्यः, उदारचरितः, शान्तचित्तः, न्यायपथावलम्बी, सततं कर्त्तव्य-कर्मानुष्ठाता यथोक्तम्।

*प्रमाण - 3*

महर्षि वेदव्यास जी ने निम्न आठ गुणों से युक्त व्यक्ति को आर्य कहा है-  ज्ञानी तुष्टश्च दान्तश्च सत्यवादी जितेन्द्रियः।

दाता दयालुर्नम्रश्च स्यादार्यो ह्यष्टभिर्गुणैः।।

अर्थ:- जो ज्ञानी हो, सदासन्तुष्ट रहने वाला हो, मन को वश में करने वाला हो, सत्यवादी, जितेन्द्रिय, दानी, दयालु और नम्र हो, वह आर्य कहलाता है।


*हिन्दू शब्द की वास्तविक व्याख्या*-


संस्कृत व्याकरण में तो कहीं हिन्दू शब्द है ही नहीं. ये शब्द अरबी- फ़ारसी- लिपियों में व्याख्याकारों के संग्रह मे मिलता है. तदनुसार हिन्दू शब्द का अर्थ -


हिन्दू दर मुहावरा फारसियां ब मअने दुज़दो रहज़नों ग़ुलाम मे आयद। अर्थ – हिन्दू शब्द फ़ारसी भाषा के अनुसार चोर, डाकू, रहजन (मार्ग का लुटेरा) और ग़ुलाम (दास, बंदी) के अर्थो में आता है | (सन्दर्भ ग़यास ग़यास नामी कोष) 


हिन्दू बकसर ग़ुलाम व बन्दह, काफ़िर व तेरा। अर्थ : हिन्दू का अर्थ ग़ुलाम, कैदी, काफ़िर और तलवार है। (सन्दर्भ  कशफ  कशफ नामी कोष ) 


चे हिन्दू हिंदुए काफ़िर चे काफ़िर, काफ़िर रहजन। चे रहज़न रहज़ने ईमान , अर्थ : हिन्दू क्या है ? हिन्दू काफ़िर है। काफ़िर क्या है ? काफ़िर रहज़न है। रहज़न क्या है ? रहज़न ईमान पर डाका मारने वाला है। (सन्दर्भ चमन बेनज़ीर)


*एक अन्य तर्क* - संस्कृत के सिंधु शब्द से हिन्दू बना है क्योंकि हम लोग सिंधु निवासी है और वहां स शब्द को ह शब्द बोला जाता है. 


ये बात कुछ हजम नहीं हुई यदि स को ह बोला जाता है तो पूरा शब्दकोश ही बदल डालना चाहिए. कोई totla बोलता है तो क्या करें? वैसे ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि स को ह बोला जाता है आज भी सिंधु नदी का नाम सिंधु नदी ही है हिन्दू नदी नहीं है. 

संस्कृत के सिंधु शब्द का किसी भारतीय भाषा में "हिन्द" रूप नहीं हुआ,क्योंकि संस्कृत के किसी भी शब्द के आरम्भ का असंयक्ुत "स" प्राकृत भाषा में भी यथावत "स" ही रहा है,परिवर्तित नहीं हुआ। यथा-  सप्ुत - सत्तु , सप्त- सत्त , सद्भाव -सब्भाव, सौभाग्य - सोहग्ग, सत्य - सच्च,सखु - सहु,सन्ैय - सेण्ण,सर्प -र्प सप्प,सर्व - र्व सव्व ।  प्राकृत भाषाओं सेआगे परिवर्तन होकर अपभ्रंश भाषाएँ अस्तित्व में आईं। उन अपभ्रंशों से परिवर्तित होकर आजकल की हिन्दी, पंजाबी,गुजराती, बंगला,मराठी आदि भाषाओं की परम्परा चली।इनमें भी सर्वत्र शब्द के आरम्भ का "स" यथावत् बना रहा है,"ह" नहीं हुआ है। यथा पंजाबी में सत्त और हिन्दी में सात का स संस्कृत के "सप्त" के स को यथावत्त रखे हुए है।


 आज के इस्लामी पाकिस्तान में लगभग पचहत्तर वर्ष के बाद भी सिधं नदी"सिधं दरिया"और सिधं सूबा ही है|


हिन्दू हिन्दी हिन्दुत्व हिन्दुइज्म हिन्दुस्तान शब्द वेद उपनिषद दर्शन रामायण महाभारत मनुस्मृति गीता जैसे किसी प्राचीन धार्मिक व ऐतिहासिक ग्रन्थ में नहीं| किसी भारतीय व्याकरण शास्त्र में भी ये शब्द नहीं | उपरोक्त से स्पष्ट है कि हिंदू  शब्द मुगल काल की देन हैं और दास्ता के प्रतीक हैं| फारसी भाषा में हिन्दू शब्द के अर्थ हैं- चोर काफिर लुटेरा | हिन्दू कोई धर्म नहीं, लेकिन इसके अंतर्गत  आस्तिक नास्तिक, शराबी, नशा करने भंग पीने वाले , मांसाहारी, शाकाहारी सब आते हैं | और श्रधा के नाम पर किसी भी धातु की  मूर्ति चाहे किसी भी बदसूरत रूप मे हो ईश्वर का प्रतीक है जिसको नहाना, भोग लगाना, प्राण प्रतिष्ठा करना,  ताले मे रखना इनको खरीदने बेचने, बदलने जैसे कार्य, पशु बलि, गुरु पूजा आदि हिन्दुओं मे फैला दिए क्योंकि आर्य होने पर ये सभी वेद विरुद्ध और महापाप की श्रेणी मे आते थे.  

 हमारे देश का मूल नाम आर्यवर्त  है| सनातन काल से आर्यों की एक ही पूजा पद्धति रही है- यज्ञ व योग |

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