महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के अंतिम क्षण



1883 दीपावली के दिन अजमेर स्थित भिनाय कोठी में अंतिम श्वास लिया । मृत्यु से पूर्व उन्होंने  क्षौर कर्म ( केश कटवाये ) कराया  स्नान किया । इच्छानुसार भोजन बनवाकर थोड़ा सा भोजन किया । सभी आगंतुकों से सायं 5 --- 6 बजे के मध्य भेंट की सबसे कुशलक्षेम और इच्छा पूछी । सबको अपने पीछे खड़े होने  के लिये कहा  , कमरे के सभी खिड़की और दरवाज़े खोलने का आदेश दिया , तिथि, वार , पक्ष एवं मास की जानकारी ली । किसी भक्त ने उन्हें बताया आज कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की अमावश्या और मंगलवार है  दीवाली का दिन है । यह सुनकर महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने छत की ओर दृष्टि दौड़ाई और वेद मंत्रों का पाठ किया । प्रार्थना उपासना मन्त्रों का तथा संस्कृत में श्लोकों का उच्चारण कर उच्च स्वर से गायत्री मन्त्र का पाठ किया हिन्दी में परमेश्वर से प्रार्थना कर आँख बंद करके समाधिस्थ हो गये । कुछ समय पश्चात आंखें खोली और ये शब्द कहे --- "  *परमेश्वर तूने अच्छी लीला की तेरी इच्छापूर्ण हो'*'।   ये शब्द कहकर करवट से लेट  गये गहरा श्वास भरा छोड़ दिया , इसके साथ ही उनके प्राण पखेरू  अनन्त में विलीन हो गये । यह सायं 6 बजे का समय था मृत्यु के समय स्वामी जी की मुख मुद्रा शान्त प्रसन्नता से परिपूर्ण थी । यह प्रयाण योगी का ही सम्भव है । किसी अन्य का नहीं । 

उनके बताए मार्ग पर चलकर हम अपना और संसार का भला कर सकते हैं ।

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