कबीर ने मूर्तिपूजा का खंडन किया और अलग से कबीर पंथ संप्रदाय चलाया। लेकिन हिन्दू समाज आज भी उनको आदर देता है और उनके दोहे गुनगुनाता है।
गौतम बुद्ध ने मूर्तिपूजा का खण्डन किया। मध्यम मार्ग बताया और अलग से बौद्ध मत चलाया। हिन्दू समाज ने उनको सम्मान देते हुए विष्णु का ९वाँ अवतार बना दिया।
नानक देव जी ने मूर्तिपूजा का खण्डन किया। नाम जपने की रीत चलाई और अलग से गुरु परंपरा के अनुसार सिक्ख पंथ चलाया। हिन्दू समाज आज भी उनको सम्मान देता है। और उनको भी विष्णु का अवतार तो कभी ऋषि के रूप में मानता है। परन्तु --- आर्ष दृष्टि
ऋषि दयानन्द सरस्वती जी ने भी मूर्तिपूजा का खण्डन किया ! विकृत सनातन धर्म को मूल शुद्ध वैदिक सनातन धर्म बनने को चेताया ! पातंजल योगाभ्यास की रीति से उपासना करने की प्राचीन परंपरा अपनाने का आह्वान किया ! गर्व से कहो,हम आर्य हैं…
कोई अलग से संप्रदाय नहीं चलाया
अपितु सनातन वैदिक सिद्धांतो की रक्षा के लिए वैदिक धर्म ( हिन्दू धर्म ) की रक्षा के लिए आर्य समाज रूपी संगठन का निर्माण किया और इसी आर्य समाज के युवा कभी बिस्मिल राजगुरु सुखदेव भगत सिंह के रूप में फांसी पर चढे़ तो कभी शेखर के रूप में अपना बलिदान दिया तो कभी शुद्धि आन्दोलन चलाया और सीने पर गोलियां खाई तो कभी चाकूओ के वार सहे किन्तु फिर भी ये हिन्दू समाज ऋषि दयानन्द सरस्वती और आर्य समाज से घृणा करता है ! आखिर क्यों ? आर्य सिद्धान्त विमर्श
क्योंकि इन्हें यह तक ज्ञान नहीं कि कौन इनका मित्र है कौन शत्रु कौन इनका हित चहता है कौन अहित ! ईश्वर सद्भावना पूर्ण सद्बुद्धि दें ! जिससे ये अपने मित्र और शत्रु को पहचान सकें अपना हित अहित जान सकें ।। --- जय आर्य जय आर्यावर्त 🙏🏻🚩🙏🏻🚩🙏🏻