ऋषि ऋण चुकाना है, आर्य राष्ट्र बनाना है।(भजन)

 ऋषि ऋण चुकाना है,

आर्य राष्ट्र बनाना है।

तो मिल के बढ़ो, मंजिल पे चढ़ो,

चढ़ने का जमाना है।

देश के कोने कोने में,

सन्देश सुनाना है।। टेक।।


हम कस कर कमर चलें हैं, निकले हैं।

इस मार्ग में, ले मजबूत इरादा।

हम कभी ना विचलित होंगे।

परवाह नहीं ऽ चाहे, आए कितनी बाधा।।

हमारा वेद खजाना है, जो सबसे पुराना है।

तो मिल के बढ़ो, मंजिल पे चढ़ो......(1)


असमानता की ये खाई, हाँ खाई।

अब पाटनी है ऽ समाज के आंगन में।

मजहब की ये दीवारें, हाँ दीवारें।

नहीं राखनी हैं ऽ माता के दामन में।

पाखण्ड गढ़ ढाना है, दलितों को उठाना है।

तो मिल के बढ़ो मंजिल पे चढ़ो........(2)


सूरज की किरण से तप कर,

जब निकलेगा मेहनत का पसीना।

सोना उगलेगी यह धरती,

खुशहाली हो दूध दही का पीना।

खेतों में कमाना है ऽ उद्योग लगाना है।

तो मिल के बढो मंजिल पे चढ़ो.......(3)


आपस के झगड़े सारे,

पंचायत में अपने आप निपटाओ।

इस दहेज के चक्कर से, हाँ टक्कर से

यह विनती करें समाज को बचाओ।

मंहगे का जमा है ऽ ना लूटना लुटाना है।

तो मिलके बढ़ों मंजिल पे चढ़ो.......(4)

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