अमर बलिदानी आर्य वीर श्री पंडित लेख राम जी ने अपने 39 वर्ष के अल्प जीवन में आर्य समाज की वेदी पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया । सरकारी नौकरी छोड़ी, पिताजी की मृत्यु हो गई और स्वयं आर्य समाज के प्रचार के कार्य में व्यस्त रहे, छोटे भाई तोताराम का देहावसान हुआ और पंडित जी दीनानगर एवं अन्य स्थानों में शास्त्रार्थ में व्यस्त रहे, इकलौता पुत्र अति रुग्ण अवस्था में मृत्यु शैया पर पड़ा था और आर्यवीर यह सोचकर घर से निकल पड़ा कि अपने एक पुत्र से जाति के वे पांच पुत्र प्यारे हैं जिन्हें हिंदू धर्म से विमुख करके मुसलमान बनाया जा रहा है। अपने सवा साल के पुत्र सुखदेव की अंत्येष्टि करके दूसरे दिन अपनी पत्नी लक्ष्मी देवी को घर पहुंचा कर धर्म प्रचार के कार्य के लिए मैदान में निकल पड़ते हैं , वह हमेशा कहते थे कि आर्य मुसाफिर का घर में क्या काम ।
पंडित लेखराम जी एक साधारण ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न हुए , उनमें विद्वता, सहनशीलता, करुणा ,त्याग एवं सरलता जैसे सभी गुण विद्यमान थे। उनकी दिनचर्या और जीवन बहुत सरल एवं सदा ढंग का था , किंतु उच्च विचारों के स्वामी थे, वे अन्याय और झूठ को सहन नहीं कर सकते थे और बड़े से बड़े बड़ा बलिदान देने को तत्पर रहते थे।
बहुत से विद्वान अगर वक्त होते हैं तो लेखक प्रभावशाली नहीं होते और यदि लेखक प्रभावशाली होते हैं तो वक्त प्रभावशाली नहीं होते , किंतु पंडित लेखराम जी की वाणी और लेखनी दोनों में जादू सा असर था , जिससे पढ़ने वाले और सुनने वाले दोनों ही मंत्र मुग्ध हो जाया करते थे। पंडित लेख राम ने अपने नाम को सार्थक किया और अपनी लेखनी से ऐसे लेख लिखे कि पाठक उनकी विद्वता , तर्क शक्ति एवं लेखनी का लोहा मान गए थे, उनके लिखे हुए ग्रंथों की इतनी मांग बढ़ चुकी थी कि वह हाथों-हाथ बिक जाया करते थे। आर्य समाज के प्रचारक बनने से पहले ही वक्त और लेखक के रूप में इनकी प्रसिद्धि सारे भारतवर्ष में फैल चुकी थी।
पंडित लेखराम के शब्दकोश में डर शब्द के लिए कोई स्थान नहीं था। वे ऋषि दयानंद के एक ऐसे वीर योद्धा थे , जिसमें निडरता कूट-कूट कर भरी हुई थी ,उन्होंने ठीक ही कहा था कि यदि इतिहास में अनुत्तीर्ण हो गए तो कोई बात नहीं, यदि अपने पुलिस इंस्पेक्टर को खरी-खरी सुना दी तो कोई डर नहीं, करतारपुर में यदि उन पर पत्थर फेके गए तो कोई बात नहीं लेकिन आर्य समाज की स्थापना तो अपने हाथों से कर दी। यदि सभा में पगड़ी उतार कर किसी ने अपमान कर दिया तो आर्य वीर को कोई चिंता नहीं ,एकलौता पुत्र मृत्यु सैया पर पड़ा है किंतु आर्य वीर प्रचारक को देश के पांच पुत्रों की शुद्धि अपने पुत्र की जान से प्यारी है।
एक आर्य समाज के उत्सव पर आर्य समाज भाइयों ने सोचा कि पंडित जी की सुरक्षा के लिए पुलिस कर ली जाए तो पंडित जी ने कहा कि अगर मैं डरूं तो घर क्यों नहीं बैठा रहूं , प्रचार के लिए बाहर क्यों निकालूं ,इसलिए पुलिस की कोई आवश्यकता नहीं है। शिमला में पंडित जी का व्याख्यान हो रहा था , तो एक धर्मांध युवक बीच में ही चिल्ला कर बोला काफीर लोगों को काटने वाली शमशिर को ना भूलो , पंडित जी शेर की तरह गर्जना करते हुए कहने लगे बुजदिल मुझे तलवार की धमकी देता है, मैंने अधर्मी निर्बल मनुष्यों से डरना नहीं सीखा आप जानते नहीं मैं जान हथेली पर लेकर फिरता हूं। एक अन्य घटना बांकीपुर आर्य समाज की है विधर्मियों से निडर रहने वाले पंडित जी मंत्री जी से कहने लगे मंत्री जी मृत्यु एक दिन अवश्य ही है किंतु सच्चे धर्म के लिए शहीद होने वाले के बराबर कोई ऐसी मृत्यु नहीं है। इस जमाने में जिन लोगों ने अपने धर्म के लिए गला कटवा लिया है उसे कर्म का कैसा प्रभाव और उत्तम परित्याग निकला है ऐसे निडर धर्म प्रचारक किसी बिरली जाति को ही मिलते हैं सच कहने में वह किसी से डरते नहीं थे।
पंडित लेख राम जी का सारा जीवन वैदिक धर्म व आर्य जाति के लिए समर्पित था। उनको एक ही धुन थी केवल वैदिक धर्म का प्रचार करना, वह वैदिक धर्म की पुष्टि के लिए व्याख्यान देते थे और शास्त्र करते थे। उनके व्याख्यानों में इस बात की पुष्टि होती थी कि वैदिक धर्म ही मनुष्य का वास्तविक धर्म है। उनका जीवन तप , त्याग और कार्य कुशलताओं से परिपूर्ण था। पंडित जी ने अपने जीवन में अनेक बार विधर्मियों से शास्त्रार्थ किए। शास्त्रार्थ हेतु पंडित जी एक बार कादिया के मौलाना के पास पहुंचे ,शास्त्रार्थ शुरू हुआ और मौलाना उनके प्रश्नों का उत्तर नही दे सके ,इस शास्त्रार्थ में मौलाना की बुरी तरह हार हुई और पंडित जी विजयी होकर सदा के लिए भी यशस्वी हो गये। पंडित जी से पराजित होने के कारण उन्होंने पंडित जी को शहादत का जाम पिलाने में ही अपने लिए बेहतर समझा। विधर्मियों की तरफ से आर्य समाज के आर्यपथिक को मार डालने की कई बार धमकियां मिल चुकी थी , किंतु वीर पंडित लेख राम जी ने जान हथेली पर रखकर वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार निरंतर करते रहे और कोई अंगरक्षक तक नहीं रखा ।
6 मार्च 1897 को शाम 7:00 बजे लाहौर में पंडित लेखराम आर्य मुसाफिर पर घातक ने छुरे से आक्रमण करके उनकी आंतडियों का अधिकांश भाग-बाहर निकाल दिया और भाग गया। आर्य पथिक ने न ही अपने धैर्य को खोया और न ही चिल्ला कर गली मोहल्ले के लोगों को एकत्रित किया। उन्होंने बड़ी वीरता से हत्यारे के हाथ से छूरा छीन कर दूसरे हाथ से बाहर निकली हुई नाड़ियों को संभाले रखा , किंतु चेहरे पर कोई उदासी नहीं और इस धैर्य और वीरता से कहने लगे कि वही दुष्ट जो शुद्ध होने आया था मार गया। रात्रि 9:00 बजे उनको गंभीर अवस्था में अस्पताल में ले जाया गया बीच-बीच में पंडित जी गायत्री मंत्र का जाप करते रहे 2 घंटे कड़े परिश्रम से डॉक्टर उनकी आंतों को सीलते रहे। लेकिन रात को 2:00 बजे उनके जीवन लीला समाप्त होकर वह अमर शहीद हो गए। अंत समय में भी उनको न ही माता की चिंता थी , न ही पत्नी की चिंता थी, चिंता थी तो केवल आर्य समाज की थी और उनका अंतिम संदेश था ....
"आर्य समाज में तहरीर और तकरीर का काम कभी बंद नहीं होना चाहिए "
आर्य समाज के प्रवर्तक ऋषि दयानंद से लेकर कई साधु महात्माओं एवं प्रचारको ने वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार हेतु अपने प्राणों की बलि दी। आर्य मुसाफिर पंडित लेखराम भी बलिदानों की इस कड़ी की श्रृंखला में ऐसे जुड़े की आर्य समाज का इतिहास अपने रक्त से लिख गये ।उनके बलिदान के पश्चात महात्मा हंसराज ने अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा था की घातक इस बात में सफल हुआ कि पंडित जी की जीवन को समाप्त कर दे परंतु पंडित जी के शहीद होने से उनका जीवन सहस्र गुना अधिक उज्जवल तथा पवित्र हो गया तथा आर्य समाज की जड़ों को भी दृढ़ कर दिया क्योंकि हुतात्मा का रक्त धर्म का सीमेंट है।
हैदराबाद सत्याग्रह के फील्ड मार्शल स्वामी स्वतंत्रानंद जी महाराज ने कहा वे आदर्श धर्म प्रचारक थे उनकी आवश्यकता आज भी विद्यमान है और वैदिक धर्म पुकार पुकार कर कह रहा है लेखराम तुम कहां हो ! तुम्हारा बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा।
ऐसे महान योद्धा की बलिदान शताब्दी 1997 में कादियां में दयानंद मठ के विस्तारक संत शिरोमणि स्वामी सर्वानन्द जी महाराज की अध्यक्षता में आर्य जगत ने बड़े ही विशाल स्तर पर मनाई गई थी। उसे सम्मेलन में मुझे भी सभी विद्यार्थियों के साथ दयानंद मठ दीनानगर के आचार्य स्वामी सदानंद जी महाराज के साथ व्यवस्था में सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ था। कादिया स्मारक के तत्कालीन प्रधान श्री बलदेव राज जी एवं महामंत्री श्री रोशन लाल चोपड़ा जी, महात्मा जगदीश राज जी एवं कादियां के सभी आर्य जनों की पूरी टीम ने बहुत परिश्रम से बलिदान शताब्दी को सफल बनाया। उस समय बलिदान शताब्दी पर स्वामी सर्वानन्द जी महाराज ने पंडित जी के अंतिम संदेश "आर्य समाज में तहरीर और तकरीर का कार्य कभी बंद नहीं होना चाहिए" पर अपने विचार रखते हुए कहा था कि हमें पंडित जी के संदेश एवं उपदेश को अपने जीवन में धारण करना चाहिए , परंतु जब तक हमारे आने वाली पीढ़ियां शिक्षित नहीं होगी तो यह कार्य कैसे संभव होगा हमारी पीढ़ीयो को शिक्षित हेतु यहां पर शिक्षा संस्थान खोला जाए , तभी आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के प्रधान पंडित हरबंस लाल जी ने उसी समय ढाई लाख रुपए कॉलेज खोलने हेतु दान दिया और वहां पर लड़कियों का कॉलेज खोला गया। हर वर्ष 6 मार्च को कादिया में बलिदान दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है और समाज में आने वाली पीढियां को जागृत करने हेतु एक विशाल सम्मेलन आने वाली 6 मार्च को भी होना निश्चित है तो आए..
ऐसे अमर बलिदानी के बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करते समय उनके कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हम सब मिलकर तकरीर और तहरीर का कार्य निरंतर करते रहने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए , जो धार्मिक उत्साह की अग्नि की लपटों को पंडित जी ने जलाया था वह कभी बुझने नहीं पाए , जो वैदिक धर्म का नाद उन्होंने बजाया था वह कभी धीमा ना पड़े , उनके सुर में सुर मिलाते हुए हम आर्य पथ के पथिक बने।
कवि ने सच ही कहा है ...
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का यही आखिर निशा होगा
उत्तम आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंडाक्टर साहब, बहुत अच्छा लेख बहुत अच्छी जानकारी, प्रशंसनीय सराहनीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी दी आपने 🙏
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